प्रयागराज (आलोक गुप्ता). आज, यानी एक जुलाई, 2024 से भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम लागू हो गए। भारत सरकार द्वारा न्याय प्रणाली में एक जुलाई से तीन कानून लागू किए गए हैं। इसके तहत अंग्रेजी शासनकाल 1860 में अंग्रेजों की ओर से आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) लागू की गई थी, जिसे अब भारतीय न्याय संहिता का नाम दिया गया है।
इसी प्रकार दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 लागू की गई है। तीसरा बदलाव भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 में किया गया है, इसे अब भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 के नाम से जाना जाएगा। नये कानून में आतंकवाद, संगठित अपराध को भी धाराओं के रूप में शामिल किया गया है। क्राइम सीन की वीडियोग्राफी, ऑडियो रिकॉर्डिंग, फोटोग्राफी को साक्ष्य माना जाएगा। नये कानून के साथ ही डिजिटल एविडेंस (साक्ष्य) पर ज्यादा जोर दिया गया है।
रेप और गैंगरेप के लिए धारा 63 और 70
भारतीय दंड संहिता 1860 में सिर्फ धाराएं नहीं बदली हैं, बल्कि सजा और जुर्माने के प्रावधान में बदलाव किया गया है। आज से जो धाराएं नये स्वरूप में जानी पहचानी जाएंगी, उसमें आईपीसी की धारा 302 है। इसे जन सामान्य में हत्या की धारा के रूप में जाना जाता है। भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस 2023) में इसे 103(1) के रूप में जाना जाएगा।
इसी तरह जानलेवा हमला की धारा 307 की जगह 109, गैरइरादतन हत्या 304(ए) की जगह 106, दहेज हत्या 304(बी) की जगह धारा 80, भ्रूण हत्या 313 की जगह धारा 89, आत्महत्या के लिए उकसाना 306 की जगह धारा 108, लूट की धारा 392 की जगह 309(ए), अश्लील हरकत की नई धारा 79, अभद्रता व छेड़छाड़ 296 और अपहरण 137(2) के नाम से जानी जाएगी। नये कानून में धारा 375 और 376 की जगह बलात्कार की धारा 63 होगी। सामूहिक बलात्कार की धारा 70 लगाई जाएगी।
IPC की जगह BNS में कुल 356 धाराएं
ब्रिटिशकालीन आईपीसी में कुल 511 धाराएं थीं, जबकि भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस 2023) में 356 धाराएं हैं। 175 धाराएं बदल दी गई हैं। आठ नई जोड़ी गई हैं। 22 धाराएं खत्म कर दी गई हैं। इसी तरह सीआरपीसी में 533 धारें हैं, इसमें 160 धाराएं बदली गई हैं। नौ नई धाराओं को जोड़ा गयाहै, जबकि नौ को खत्म किया गया है। नये कानून में मॉब लिंचिंग पर भी कानून बनाया गया है। 41 मामलों में सजा बढ़ाई गई है और 82 अपराधों में जुर्माना बढ़ाया गया है।
नए कानून के मुताबिक, आपराधिक मामलों में सुनवाई समाप्त होने के 45 दिनों के भीतर फैसला आएगा। पहली सुनवाई के 60 दिनों के भीतर आरोप तय किए जाएंगे। सभी राज्य सरकारों को गवाहों की सुरक्षा और सहयोग सुनिश्चित करने के लिए गवाह सुरक्षा योजनाएं लागू करना होगा। बलात्कार पीड़िताओं के बयान महिला पुलिस अधिकारी की ओर से पीड़िता के अभिभावक या रिश्तेदार की मौजूदगी में दर्ज किए जाएंगे। मेडिकल रिपोर्ट सात दिनों के भीतर पूरी होनी चाहिए।
भारत के नये कानूनों में किए गए परिवर्तन
- महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों पर एक नया अध्याय जोड़ा गया है। बच्चों को खरीदना या बेचना एक जघन्य अपराध की श्रेणी में रखा गया है।
- नाबालिग के साथ सामूहिक बलात्कार (गैंगरेप) के लिए मौत की सजा या आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान किया गया है।
- नये कानून में अब उन मामलों के लिए सजा का प्रावधान किया गया है, जिसमें महिलाओं को शादी का झूठा वादा कर या गुमराह करके छोड़ दिया जाता है।
- महिलाओं के खिलाफ अपराध के पीड़िता को 90 दिनों के भीतर अपने मामलों पर नियमित अपडेट प्राप्त करने का अधिकार होगा। सभी अस्पतालों को महिलाओं और बच्चों से जुड़े अपराध के मामले में मुफ्त इलाज जरूरी होगा।
- आरोपी और पीड़ित, दोनों को 14 दिनों के भीतर एफआईआर, पुलिस रिपोर्ट, चार्जशीट, बयान, इकबालिया बयान और अन्य दस्तावेजों की कॉपी प्राप्त करने का अधिकार है।
- इसके अलावा इलेक्ट्रॉनिक संचार के माध्यम से घटनाओं की रिपोर्ट की जा सकेगी, जिससे पुलिस स्टेशन जाने की जरूरत समाप्त हो सकेगी। व्यक्ति किसी दूसरे थाने में भी FIR दर्ज करा सकता है।
- गंभीर अपराधों के लिए फारेंसिक विशेषज्ञों का घटनास्थल पर जाना और साक्ष्य एकत्र करना अनिवार्य होगा।
- लिंग की परिभाषा में अब ट्रांसजेंडर भी शामिल होंगे। महिलाओं के खिलाफ कुछ अपराधों के लिए जब भी संभव हो, पीड़ित का बयान महिला मजिस्ट्रेट की ओर से ही दर्ज किए जाने का प्रावधान है।
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