मिलिए ‘आंखों वाले सरदारजी’ से, जिनका कहना है- ‘जीतेजी रक्तदान, जाते-जाते नेत्रदान’
मुरादाबाद (प्रो. श्याम सुंदर भाटिया/सतेंद्र सिंह). दो दशक से अनवरत कैंप लगाकर नेत्रदान की गुजारिश करने वाले समाजसेवी सरदार गुरबिंदर सिंह नेत्रहीनों के लिए फरिश्ते की मानिंद हैं। पिछले 22 बरस से वह हाथ जोड़कर नेत्रदान का विनम्र अनुरोध करते आ रहे हैं। समाजसेवी सरदार गुरबिंदर सिंह की इस तपस्या से अब तक 3,000 से अधिक लोग नेत्रदान कर हजारों लोगों के जीवन में उजियारा ला चुके हैं। मुरादाबाद के बाशिंदे गुरबिंदर सिंह का मानना है, नेत्रदान महादान है। ‘जीते-जीते रक्तदान, जाते-जाते नेत्रदान’ सरीखे स्गोलन को उन्होंने अपने जीवन का मूल मंत्र बना लिया है।
वह कहते हैं, मानव सेवा ही ईश्वर की सेवा है। वह यूपी के संग-संग उत्तराखंड में भी जाकर नेत्रदान की अलख जगाते हैं। शहर-दर-शहर लेक्चर देते हैं। हालांकि किसी अवार्ड की उन्हें दरकार नहीं है, बावजूद इसके सैकड़ों ट्राफी और प्रशस्ति पत्र उनकी झोली में हैं। सक्षम संस्था की ओर से हाल ही में नेत्रदान और रक्तदान के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए उन्हें वरिष्ठ श्रेणी में स्मृति चिन्ह और शाल देकर नोएडा में सम्मानित किया गया।
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गुरबिंदर सिंह स्मृतियों को खंगालते हुए बताते हैं, मुरादाबाद नागरिक समाज- मुनास संस्था की ओर से 22 बरस पहले एक नारा दिया था ‘मुनास ने देखा एक सपना, हर शहर का हो आई बैंक अपना’, इसी स्लोगन को अपना आदर्श मानते हुए वह हर शहर में एक आई बैंक स्थापित करना चाहते हैं, जिससे नेत्रदान के लिए संकल्पित व्यक्ति अपनी चाह को पूरा कर सकें। सरदार गुरबिंदर सिंह और उनकी टीम हर स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर नेत्र दान करने वाले परिवारों का नागरिक अभिनंदन करवाते हैं और नेत्रदान स्वीकार करने वाले लोगों को कार्यक्रम में आमंत्रित कर उनके अनुभव समाज के साथ साझा करते हैं।
इस नेक काज को करने का विचार उन्हें 22 बरस पहले तब आया, जब उनके बड़े भाई की आंखों की रोशनी चली गई। इलाज के बाद रोशनी तो आ गई, लेकिन इस घटना ने इनकी जिंदगी को पूरी तरह से बदल दिया। उन्होंने उसी दिन फैसला किया कि वे अब लोगों की जिंदगी में उजाला लाने का काम करेंगे। इसके लिए वह नेत्रदान की मुहिम में जुट गए। उनकी लगन और जुनून को देखते हुए उनके दो सामाजिक मित्रों- अजय गुप्ता और राघव गुप्ता ने मुरादाबाद में ही एक वर्ल्ड क्लास आंखों का अस्पताल खोलने का संकल्प लिया, क्योंकि वे अपने पिता जगदीश शरण गुप्ता को नेत्रों के उपचार के लिए बार-बार अलीगढ़ और दिल्ली लेकर जाते थे। अंततः उन्होंने सीएल गुप्ता आई इंस्टीट्यूट की स्थापना की और इस हास्पिटल में संस्थापक सचिव की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी गुरबिंदर सिंह के हाथों में सौंप दी। अब सरदार गुरबिंदर सिंह की पहचान ‘आंखों वाले सरदारजी’ के नाम से है।
मुरादाबाद में 2848 लोगों ने किया नेत्रदानः 2003 में विवेकानंद हास्पिटल में छोटे से आई इंस्टीट्यूट के रूप में इस बड़े संकल्प का शंखनाद हुआ था। इसके बाद स्कूलों, कालेजों, जनसभाओं में नेत्रदान का प्रचार करने लगे। धीरे-धीरे लोग जुड़ने लगे और कारवां बनता गया। वे समझने लगे कि मरने के बाद भी एक व्यक्ति दो व्यक्तियों के जीवन में रोशनी ला सकता है। नतीजतन अब तक मुरादाबाद में 2,848 लोग नेत्रदान करा चुके हैं। ऋषिकेश में भी एक अस्पताल चल रहा है। वहां भी 450 लोग नेत्रदान कर चुके हैं। आंखों की समस्याओं के निदान के लिए मुरादाबाद के सौ किमी के दायरे में भी 22 सेवा संस्थान खुले हैं। कम्युनिटी सर्विस के तहत ऋषिकेश से गंगोत्री तक लगभग पौने दो लाख आंखों के ऑपरेशन करा चुके हैं। सभी उपकरणों और डॉक्टरों की टीम से लैस एक मोबाइल वैन के जरिए गांव-गांव जाकर लोगों की आंखों के चश्मों की जांच कर उनका इलाज भी किया जाता है। साथ ही आर्थिक रूप से कमजोर लोगों का निशुल्क इलाज कराने में मदद भी करते हैं।