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खेती-किसानीः खरपतवार, कीट-पतंगे और रोगों से ऐसे करें फसलों की सुरक्षा

भदोही (संजय सिंह). धान की रोपाई खत्म हो चुकी है। अब खेतों में हरियाली नजर आने लगी है। देर से ही सही, मानसून ने भी किसानों की मुरादपूरी करदी है। अब, फसलों को सही पोषण और देखभाल की जरूरत है। यदि सही तरीके सेदेखभाल की जाए तो बेहतरीन उत्पादन मिल सकता है।

जिला कृषि रक्षा अधिकारी रत्नेश कुमार सिंह ने बताया कि प्रदेश में खरीफ फसलों में मुख्यतः धान, मक्का, मूंगफली, अरहर, उर्द-मूंग एवं गन्ना की खेती की जाती है। मौजूदा समय में प्रदेश के विभिन्न जनपदों में तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण फसलों में लगने वाले सामयिक कीट-रोग के प्रकोप की आशंका बढ़ जाती है।

इसलिए बचाव जरूरी हो जाता है। उन्होंने बताया कि बेहतर उत्पादन के लिए फसलों की देखभाल बहुत जरूरी है। इसकेलिए उन्होंने निम्न सुझाव किसानों को दिए हैं।

धान

  • संकरी एवं चौड़ी पत्ती खरपतवारः इस प्रकार के खरपतवारों के नियंत्रण हेतु प्रेटिलाक्लोर 50 प्रतिशत ईसी, 1.5 लीटर अथवा एनीलोफास 30 प्रतिशत ईसी, 1.25-1.5 लीटर अथवा पाइराजोसल्फ्यूरान इथाइल 10 प्रतिशत डब्ल्यूपी, 0.15 किग्रा को 500-600 लीटर पानी घोलकर फ्लैटफन नॉजिल से 2 इंच भरे पानी में रोपाई के 3-5 दिन में छिड़काव करना चाहिए।
  • दीमक एवं जड़ की सूडीः इसके नियंत्रण के लिए क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ईसी, 2.50 लीट प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करें।
  • खैरा रोग-खैरा रोग का नियंत्रणः इसके लिए 5 किग्रा जिंक सल्फेट को 20-25 किग्रा यूरिया अथवा 2.50 किग्रा बुझे हुए चूने को प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
  • तना बंधक एवं पत्ती लपेटकः तना बेधक से बचाव के लिए फेरोमोन ट्रैप (एसबी ल्योर) 6-8 प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। इसके रासायनिक नियंत्रण के लिए क्यूनालफास 25 प्रतिशत ईसी अथवा क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ईसी 1.50 लीटर अथवा फिप्रोनिल 5 प्रतिशत एससी 1.0-1.5 लीटर 500-600 लीटर पानी का घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से अथवा कारटाप हाइड्रोक्लाराइड 4 जी की 18 किग्रा मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से 3-5 सेमी स्थिर पानी/ बिखेर कर प्रयोग करें।
  • जीवाणु झुलसा एवं जीवाणुधारी रोगः जीवाणु झुलसा एवं जीवाणुधारी रोग के नियंत्रण के लिए स्यूडोमोनास फ्लोरिसेंस 2 प्रतिशत एएस 2 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से अथवा स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90 प्रतिशत  टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लाराइड 10 प्रतिशत की 15 ग्राम मात्रा को 500 ग्राम कापर आक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत डब्ल्यूपी के साथ मिलाकर 500-700 लीटर प्रति हेक्टेयर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

मक्का

  • तना बेधक कीटः इस कीट का 10 प्रतिशत मृतगोभ का आर्थिक क्षति स्तर का प्रकोप दिखाई देने पर डाईमेथोएट 30 प्रतिशत ईसी एक लीटर अथवा क्लोरन्ट्रनिलिप्रोल 200 मिली अथवा इंडोक्साकाब 500 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
  • फाल आर्मी वर्मः इस कीट के प्रकोप से बचाव के लिए 20-25 पक्षी आश्रय (बर्ड पर्चर) और 3-4 को संख्या में प्रकाश प्रपंच लगाकर आसानी से प्रबंधन किया जा सकता है। फेरोमोन ट्रैप 35-40 प्रति हेक्टेयर की दर से लगाकर भी इसका नियंत्रण किया जा सकता है। 10-20 प्रतिशत क्षति की अवस्था में रासायनिक नियंत्रण प्रभावी होता है। इसके लिए क्लोरेंट्रानिलीप्रोल 18.5 प्रतिशत एससी 0.4 मिली अथवा इमामेक्टिन बंजोइट 0.4 ग्राम अथवा थयामेथोक्साम 12.6 प्रतिशत लैम्ब्डासाईहेलोथ्रिन 9.5 प्रतिशत 0.5 मिली प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।

मूंगफली

  • मूंगफली में खरपतवार नियंत्रणः इमेजीथाईपर 10 प्रतिशत ईसी 1000 मिली 500 से 600 लीटर पानी के साथ प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के 10 से 15 दिनों पर छिड़काव करने से घासकुल एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण हो जाता है।
  • मूंगफली में टिक्का रोगः इसके रोकथाम के लिए मैंकोजेब अथवा जिनेब 75 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण की 2.00 किग्रा मात्रा को 500-600 लीटर पानी में घोलकर आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए।

अरहर

  • पत्ती लपेटक कीटः नियंत्रण के लिए प्रभावित भाग को तोड़कर नाशीजीव के अंड समूह एवं इल्लियों को मिट्टी में दबाकर नष्ट कर देना चाहिए और एजाडिरेक्टिन 0.03 प्रतिशत डब्ल्यूएसपी 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
  • अरहर की फसल में बंझा (स्टोरिलिटी मोजैक) रोगः इससे प्रभावित पौधों को उखाड़ कर मिट्टी में दबाकर नष्ट कर देना चाहिए और डाइमेथोएट 30 प्रतिशत ईसी 1.00 लीटर मात्रा को 500-600 पानी में घोलकर छिड़काव करने में रोग के प्रसार को रोका जा सकता है।

उर्द/मंग/सोयाबीन

  • खरपतवार नियंत्रणः इमेजीथाईपर 10 प्रतिशत ईसी 1000 मिली 500 से 600 लीटर पानी के साथ प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के 10 से 15 दिनों पर छिड़काव करना चाहिए।
  • पीला चितवर्ण रोगः इस रोग से ग्रसित पौधों को उखाइकर मिट्टी में दबाकर नष्ट कर देना चाहिए।
  • रोग के वाहक कीटः सफेद मक्खी के रसायनिक नियंत्रण के लिए डाइमेथोएट 30 प्रतिशत ईसी 1.00 लीटर मात्रा को 500-600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के अंतराल पर दो से तीन छिड़काव करें।

गन्ना

  • टाप बोरर (चोटी बेधक): इसके प्रकोप की स्थिति में ट्राइकोग्रामा किलोनिस के 50000-60000 अंडे प्रति हेक्टेयर की दर से 3 बार प्रयोग करना चाहिए। टीएसबी ल्योर 6-8 प्रति हेक्टेयर की दर से भी प्रयोग कर चोटी बेधक कीट का नियंत्रण किया जा सकता है। इसके रासायनिक नियंत्रण के लिए क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ईसी 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 600-800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
  • लाल सड़न रोगः इस रोग से बचाव के लिए प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करना चाहिए। बुवाई के लिए स्वस्थ गन्ने के टुकड़ों का चयन करना चाहिए। रोगग्रस्त फसल को इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। प्रभावित क्षेत्रों से फसल चक्र अपनाना चाहिए। इस रोग के वाहक कीट माहू के नियंत्रण के लिए येलो स्टिकी ट्रैप का प्रयोग करना चाहिए। स्यूडोमोनास फ्लोरिसेंस 2.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 100 किग्रा अधसड़ी गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए। गन्ने के टुकड़ों को कार्बेंडाजिम 50 प्रतिशत के 2 प्रतिशत घोल (2 ग्राम रसायन प्रति लीटर पानी) में 5-10 मिनट डुबोने के पश्चात बुवाई करना चाहिए।

कद्दू वर्गीय सब्जियां

  • फल मक्खी-ग्रसित फलों को इकट्ठा करने का नष्ट कर देना चाहिए। जैविक नियंत्रण के लिए एजाडिरेक्टिन 0.15 प्रतिशत 2.5 लीटर मात्रा 500-600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से 10-15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए। 6-8 फेरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। मिथाइल यूजीनाल इथाइल एल्कोहल मैलाथियान 50 प्रतिशत ईसी के 4:6:1 के बने घोल में 5:5:1.5 मिमी के प्लाईवुड के टुकड़ों को एक सप्ताह तक शोधित कर लगाएं, जिससे एक किमी तक की फल मक्खी आकर्षित होती है, जिसे एकत्र कर नष्ट कर दें।

सहभागी फसल निगरानी एवं निदान प्रणाली (पीसीएसआरएस)

  • जिला कृषि रक्षा अदिकारी रत्नेश कुमार सिंह ने बताया कि कृषि विभाग (कृषि रक्षा अनुभाग)  द्वारा फसलों में लगने वाले कीट-रोग संबंधी समस्याओं के त्वरित निदान के लिए मोबाइल नंबर (9452247111 एवं 9452257111) उपलब्ध कराए गए हैं। कृषक अपनी फसल संबंधी समस्याओं को व्हाट्सप्प/एसएमएस के माध्यम से भेज सकते है। इसके द्वारा 48 घंटे में समाधान किया जाता है।

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