बलिदान दिवस पर दिखा बुंदेलखंड की वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई का शौर्य और त्याग
क्षेत्रीय अभिलेखागार में प्रदर्शनी का आयोजन, संगोष्ठी में वक्ताओं ने रानी की वीरता को किया नमन
प्रयागराज (आलोक गुप्ता). जिसकी तलवार की धार और ललकार से प्रथम स्वाधीनता संग्राम में ब्रिटिश सेना के छक्के छूट गये। कई युद्ध के मोर्चों पर अंग्रेजों को पराजित होना पड़ा। जिसने गोरों की लाशों की कतार लग दी थी। स्वतंत्रता संग्राम की जगमगाती दीपशिखा, शौर्य की सजीव प्रतिमा महारानी लक्ष्मीबाई (Rani Lakshmibai ) को उनके बलिदान दिवस ( day of sacrifice) यानी 18 जून, 2023 (रविवार) को याद किया गया।
आजादी का अमृत महोत्सव के तहत रानी लक्ष्मीबाई (Rani Lakshmibai ) के बलिदान दिवस पर दुर्लभ अभिलेख एवं चित्र प्रदर्शनी कार्यक्रम का आयोजन क्षेत्रीय अभिलेखागार (संस्कृति विभाग) में किया गया। प्रदर्शनी का उद्घाटन डा. सालेहा रशीद (विभागाध्यक्ष, अरबी-फारसी विभाग, इविवि) ने किया।
प्रस्तुत प्रदर्शनी में प्रमुख रूप से रानी लक्ष्मीबाई द्वारा हस्ताक्षर युक्त पत्र, दीवान लक्ष्मणराव (सलाहकार रानी लक्ष्मीबाई) को कालापानी की सजा, रानी लक्ष्मीबाई की संपत्ति जब्ती अभिलेख, रानी के बनारस स्थित भवनों की सूची, रानी की मृत्यु संबंधी टेलीग्राफ, रानी के सहयोगियों महीप सिंह, दीवान लक्ष्मण राव, भोले अहीर, लाला दुबे को दी गई फांसी और कालापानी की सजा से संबंधित अभिलेखों को प्रदर्शित किया गया।
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कार्यक्रम में झांसी के स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित संगोष्ठी का आयोजन भी किया गया। मुख्य वक्ता के रूप में डा. गोपाल मोहन शुक्ल (पुस्तकालय अध्यक्ष, पब्लिक लाइब्रेरी, प्रयागराज) ने झांसी की क्रांति पर विचार व्यक्त किए। अन्य वक्ताओं में पूर्व सहनिदेशक डा. विमला व्यास, प्रधानाचार्य डा. रवि भूषण, जगदीश नारायण विश्वकर्मा, श्याम सुदंर सिंह पटेल ने भी विचार व्यक्त किए।
कार्यक्रम में चित्रकला प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया, जिसमें सभी आयु वर्ग के प्रतिभागियों ने शामिल होकर आयोजन को पूर्णता प्रदान की। अतिथियों का स्वागत और कार्यक्रम का संयोजन राकेश कुमार वर्मा (प्राविधिक सहायक) ने किया। इस अवसर पर क्षेत्रीय अभिलेख अधिकारी डा. मोहसिन नूरी, डा. रश्मि शुक्ल, रंगबली पटेल, हरिश्चंद्र दुबे, दीपिका सिंह, रत्नेश द्विवेदी, रोशन लाल, वेद प्रकाश, राजेश कुमार सोनकर आदि उपस्थित रहे।
स्वतंत्रता की जगमगाती दीपशिखा शौर्य की सजीव प्रतिमा महारानी लक्ष्मीबाई केवल भारत की नहीं वरन संसार की उन वीरांगनाओं में से एक हैं जिनकी गिनती अंगुलियों पर की जा सकती है। लक्ष्मी नाम है उसका जिसने जनमानस में नारी के प्रति स्थापित कल्पना को परिवार्तित कर उसे अबला के स्थान पर सवला, कोमलांगी के स्थान पर वज्रांगना और रमणी के स्थान पर रणचंडी के रूप मे प्रस्थापित किया।
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हर-हर महादेव के उद्घोष संग निकले प्राणः क्षेत्रीय अभिलेख अधिकारी डा. मोहसिन नूरी ने बताया कि 18 जून, 1858 को रानी लक्ष्मीबाई भीषण युद्ध में अंग्रेजों और उनकी सेना का विनास करते हुए गंभीर रूप से जख्मी हो गईं। घायलावस्था में रानी को सेना नायक गुल मोहम्मद, बाबा गंगादास की कुटिया में ले गए। रानी का शरीर खून से लथपथ था, वह अचेत थीं। बाबा गंगादास ने रानी के मुख में गंगा जल डाला तो थोड़ी चेतना आई और उनके मुख से हर-हर महादेव निकला और फिर अचेत हो गईं।
थोड़ी देर वाद बाबा ने फिर गंगाजल मुख में डाला तो एक बार शरीर में फिर सिहरन हुई और मुख से ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः’ निकला। इसी स्वर के साथ वीरता का सूरज अस्त हो गया। जो जीवन ज्योति 19 नवंबर, 1835 को ज्योतित हुई थी, वह 18 जून, 1858 को बुझ गई। बुंदेले (Bundelkhand) हर बोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी। रानी लक्ष्मी बाई ग्वालियर में 18 जून 1858 को ब्रिटिश सेना से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुई थीं।
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