नम आंखों से अक़ीदतमंदों ने दफ्न किए ताज़िया, अलम और ताबूत
प्रयागराज (आलोक गुप्ता). इंसानियत का पैग़ाम सारी दुनिया में फैलाकर करबला के मैदान में तीन दिन के भूखे-प्यासे खानदाने रिसालत की शहादत यानि आशूरा पर हर तरफ ग़म की चादर और आंखों में आंसू दिखे। अक़ीदतमंदों ने नंगे पैर इमामबाड़ों से करबला तक का पैदल सफर तय कर इमामबाड़ों में रखे ताज़िए और अलम, ताबूत, झूला व ज़ुलजनाह पर चढ़े फूलों को नम आंखों से सुपुर्द-ए-खाक किया।
बख्शी बाज़ार इमामबाड़ा नज़ीर हुसैन से लगभग 1928 में लड्डन मरहूम द्वारा क़ायम किया गया तुर्बत का क़दीमी जुलूस निकाला गया। मौलाना आमिरुर रिज़वी ने शहादत का मसायब पढ़ा। तुर्बत व अलम का जुलूस बख्शी बाज़ार, दायरा शाह अजमल, रानी मंडी, बच्चाजी धर्मशाला तक ज़ैग़म अब्बास की मर्सिया ख्वानी करते हुए इमामबाड़ा मीर हुसैनी पहुंचा। इमामबाड़े में ज़ाकिरे अहलेबैत रज़ा अब्बास ज़ैदी ने ग़मगीन मसायब ए हुसैन पढ़े। बाद मजलिस अंजुमन आबिदया के नौहाख्वान मिर्ज़ा काज़िम अली व वेज़ारत ने पुरदर्द नौहा पढ़ते हुए जुलूस को इमामबाड़े से बाहर लाकर डा. चड्ढा रोड, कोतवाली, नखास कोहना, खुल्दाबाद, हिम्मतगंज होते हुए चकिया स्थित शिया करबला पर पहुंच कर संपन्न कराया गया।
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वहीं दूसरा क़दीमी दुलदुल जुलूस इमामबारगाह मिर्ज़ा नक़ी बेग से बशीर हुसैन की सरपरस्ती में निकाला गया। अंजुमन हैदरिया रानीमंडी के नौहाख्वान हसन रिज़वी व साथियों ने पुरदर्द नौहों की सदाओं के साथ जुलूस को अपने परंपरागत मार्गों से होते हुए चकिया करबला पहुंचे। दरियाबाद से आशूरा को निकाले गए जुलूस दरियाबाद स्थित क़ब्रिस्तान पहुंचे जहां अक़ीदत के फूलों व ताज़िये को दरगाह इमाम हुसैन के पास बने छोटे छोटे गड्ढों में सुपुर्द-ए-खाक किया गया।
खुले आसमान अक़ीदतमंदों ने किया आमाले आशूराः छह माह के मासूम अली असग़र की शहादत के बाद हज़रत इमाम हुसैन जब लाशा-ए-बेशीर को खेमे में वापिस लेकर जाने लगे तो सात बार आगे बढ़े और फिर अपने क़दमों को पीछे कर लिया। वह यही सोच रहे थे कि कैसे इस बेज़ुबान बेटे की लाश को उसकी मां रबाब के पास लेकर जाएं। इसी मरहले को याद करते हुए शिया समुदाय के लोग यौमे आशूरा को खुले आसमान में उसी अमल को करते हैं, जिसे आमाले आशूरा कहा जाता है। करबला में सैकड़ों लोगों ने मौलाना सैय्यद रज़ी हैदर रिज़वी की क़यादत आमाले आशूरा किया और नमाज़ अदा की।
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हाय सकीना, हाय प्यास की सदाओं संग निकला जुलूसः 1400 साल पहले करबला के मैदान में शहीद हुए उम्मते मुसलिमा के रसूल हज़रत मोहम्मद ए मुस्तफा के चहेते नवासे हज़रत इमाम हुसैन व अन्य खानदाने रिसालत के शहीद हो जाने के बाद यज़ीदी लश्कर द्वारा खेमों में आग लगा देने और सैदानियों के सिरों से चादरें छीनने के साथ लूटपाट का बाज़ार गर्म हो गया। उस दर्दअंगेज़ अंधेरी रात और बियाबान के मंज़र की याद में रानीमंडी क़ाज़मी लॉज व इमामबाड़ा आबिदया में शामें ग़रीबां की मजलिस हु्ई। सड़कों, गलियों व घरों की सभी लाइटों को बंद कर या हुसैन या हुसैन की सदाओं के साथ जुलूस निकाला गया।
किया मातम, मोमबत्ती की रोशनी में निकला ज़ुलजनाहः असगर अब्बास ने पढ़ा -भय्या तुझे घर जाके कहां पाएगी ज़ैनब, घबराएगी ज़ैनब। तो हर तरफ से आहो बुका की सदा गूंजने लगी। काली चादर में ढली ज़ीन का दुलदुल निकाला गया। बच्चे व छोटी बच्चियां हाथों में खाली कूज़े और मशालें लेकर हाय सकीना, हाय प्यास, अम्मू मैं प्यासी हूं की सदा बुलंद करते हुए जुलूस के साथ-साथ चलती रहीं। वहीं दरियाबाद में दरगाह इमाम हुसैन के बाहर क़ब्रिस्तान में जुटे अक़ीदतमंदों ने मजलिस व मातम किया मोमबत्ती की रोशनी में ज़ुलजनाह निकाला गया। मौलाना आमिरुर रिज़वी के अज़ाखाने पर देर रात शामें ग़रीबां की मजलिस हुई। अशरफ अब्बास खां ने मजलिस को खिताब किया तो अंजुमन नक़विया के नौहाख्वानों ने नौहा पढ़ा।
शोहदा-ए-करबला के तीजे पर निकाला जाएगा जुलूसः कर्नलगंज बूचड़खाना स्थित इमामबाड़ा ज़ुल्फ़ेक़ार हैदर से हज़रत इमाम हुसैन व अन्य करबला के शहीदों के तीजे पर 31 जुलाई (सोमवार) को रात्रि आठ बजे जुलूस-ए-तीजा निकाला जाएगा। ज़ैनुल मिर्ज़ा व फरज़ान मिर्ज़ा की सोज़ख्वानी तो ज़की अहसन पेशख्वानी के फराएज़ अंजाम देंगे। मौलाना सैय्यद रज़ी हैदर रिज़वी साहब क़िब्ला मजलिस को खिताब करेंगे। अंजुमन अब्बासिया रानीमंडी नौहों और मातम का नज़राना पेश करेगी।