ईदगाह समेत शहर की सभी छोटी-बड़ी मस्जिदों में अता की गई ईदुल अज़हा की विशेष नमाज़
प्रयागराज (आलोक गुप्ता). ईद उल अज़हा यानी बकरीद का पर्व सोमवार को अक़ीदत व ऐहतेराम के साथ शांति-सद्भाव के साथ मनाया गया। उम्मुल बनीन सोसायटी के महासचिव सैय्यद मोहम्मद अस्करी ने बताया कि प्रातः छह बजे से 10:30 बजे तक ईदगाह सहित शहर की सभी मस्जिदों, इबादतगाहों और घरों में ईद उल अज़हा की खास नमाज़ ओलमा की क़यादत में अता की गई।
ईदगाह, चौक जामा मस्जिद, चक ज़ीरो रोड शिया जामा मस्जिद, रोशनबाग़ शाह वसी उल्ला मस्जिद, करेली बीबी खदीजा मस्जिद, बख्शी बाज़ार मस्जिद क़ाज़ी साहब, दायरा शाह अजमल की खानकाह मस्जिद, अटाला व रसूलपुर की बड़ी मस्जिद, दायरा शाह अजमल की मस्जिद-ए-नूर, बैदन टोला, सियाहमुर्ग़, धोबी घाट की हरी मस्जिद, करेली लेबर चौराहे की मस्जिद-ए-मोहम्मदी, दरियाबाद की इमाम रज़ा मस्जिद, बैतुस्सलात, मुसल्ला-ए-ज़ीशान, इबादतखाना, मदरसा जमीयतुल अब्बास वीआईपी कालोनी समेत शहर की सैकड़ों मस्जिदों में तय समय पर ईद उल अज़हा की खास नमाज़ अता की गई।
इस दौरान सभी धर्मों का आदर करने के साथ मुल्क-ए-हिंद के लिए कामयाबी और कामरानी के साथ आगे बढ़ते रहने की दुआ मांगी गई।
फात्मा वेलफेयर सोसायटी ने ज़रुरतमंदों के साझा की बकरीद की खुशियां
सामाजिक शैक्षणिक व चिकित्सा क्षेत्र में कार्य करने वाली संस्था फात्मा वेलफेयर सोसायटी की ओर से ईद उज़ ज़ुहा (बक़रीद) के मौक़े पर एक अनोखी पहल की गई। घर-घर जाकर ज़रुरमंदों को जहां खाद्ध सामाग्री बांटी, वहीं बच्चों को तोहफे भेंट किए। स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. नाज़ फात्मा ने अपनी संस्था फात्मा वेलफेयर सोसायटी की ओर से दरियाबाद, करेली, बख्शी बाज़ार, रसूलपुर, अटाला आदि इलाक़ों में ग़रीब व तंगी से जूझते लोगों को पहले चिन्हित किया फिर ईद-उज़-ज़ुहा पर उनके घर पहुंचकर रोज़ इस्तेमाल होने वाली खाद्य सामग्री आटा, दाल, चावल, सरसो तेल और मसाले आदि दिए गए। वहीं घर के छोटे बच्चों को वस्त्र व चाकलेट भी दिए। इस मौक़े पर डा. नाज़ फात्मा, अमित यादव, डा. जमशेद अली, अर्सलान खान, सैय्यद मोहम्मद अस्करी, फर्ज़न गद्दी, फुज़ैल खान, आतिफ आदि शामिल रहे।
गुमराही को क़ुर्बान करना ही बकरीद का असली मक़सदः जवादुल हैदर रिज़वी
मस्जिद क़ाज़ी साहब बख्शी बाज़ार में ईद उल अज़हा यानी ईद-ए-क़ुरबां पर बाद नमाज़ खुतबे में मौलाना सैय्यद जव्वादुल हैदर रिज़वी ने ईद क़ुरबां की फज़ीलत बयां की। कहा, हज़रत इब्राहिम को तीन मर्तबा ख्वाब में अल्लाह ने अपने बेटे को राहे खुदा में क़ुर्बान करने का हुक्म दिया तो उस ख्वाब को उन्होंने अपनी बीवी और बेटे हज़रत इस्माइल को बताया।
बीवी और बेटे की रज़ामंदी के बाद हज़रत इब्राहिम मेना की पहाड़ी पर बेटे को राहे खुदा में क़ुर्बान करने को लेकर गए। रास्ते में तीन शख्स ने अलग-अलग तरीकों से उन्हे इस अहकाम से रोकने की कोशिश की, लेकिन दोनों ने उनको नकारते हुए यही कहा कि तुम शैतान हो। आज काबे में हज के बाद उन्हीं तीन शैतानों पर हाजी कंकड़ मारते हैं। जब तक इस रस्म की अदायगी नहीं होती तब तक हज मुकम्मल नहीं होता।
हज़रत इब्राहिम ने जब खुदा के हुक्म से बेटे इस्माइल की गर्दन पर छूरी फेरनी चाही तो अल्लाह की तरफ से ग़ैब से उस जगहा पर दुम्बा ज़िबहा पाया और आंख की पट्टी खोली तो देखा दुंबा क़ुर्बान हो चुका था और बेटा हज़रत इस्माइल बग़ल में सही सलामत खड़ा मुस्कुरा रहा था।
इसी सुन्नत को अमल में लाते हुए दुनियाभर में मुसलमान आज के दिन दुंबों व बकरों की क़ुर्बानी देते हैं। इस तहरीक से लोगों को चाहिए की आज से अहद लें की सिर्फ जानवर ही नहीं अना, हसद, ग़ुस्सा, तकब्बुर, गुमराही को भी क़ुर्बान कर अच्छे और सच्चे मोमिन बन जाएं ताकि अल्लाह हमारी क़ुर्बानी को क़ुबूल करें।