पूर्वांचल

सर्टिफिकेट नहीं देना था तो विकलांग बच्चों को क्यों बुलाया? स्वास्थ्य विभाग मौन

उमसभरी गर्मी में पसीने से तरबतर अभिभावक और मानसिक दिव्यांग बच्चे घंटों हुए परेशान

सरकारी स्कूल के दिव्यांगों के लिए बीआरसी औराई में लगाया गया था मेडिकल असेसमेंट कैंप

भदोही (संजय सिंह). स्वास्थ्य विभाग की भारी लापरवाही के कारण गुरुवार को दूरदराज से बीआरसी औराई आए अभिभावकों और मानसिक रूप से दिव्यांग बच्चों को भारी मुसीबत का सामना करना पड़ा। मानसिक दिव्यांगता का सरकारी सर्टिफिकेट पाने की लालच में यहां आए अभिभावकों ने बाकायदा पंजीकरण करवाया था। बावजूद इसके न तो मानसिक दिव्यांग बच्चों की जांच हुई और न ही सर्टिफिकेट दिया गया।

उमसभरी भीषण गर्मी में पसीने से तरबतर कुछ अभिभावकों ने कैंप के आयोजकों पर अपना गुस्सा भी निकाला और समस्या से निजात पाने के लिए जिलाधिकारी और मुख्य चिकित्साधिकारी से फोन पर संपर्क साधा, लेकिन मौके पर दोनों अधिकारी उपलब्ध नहीं हो सके।

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विकास खंड औराई के ऐसे दिव्यांग बच्चे, जो परिषदीय विद्यालयों में पढ़ते हैं, उनको सर्टिफिकेट देने के उद्देश्य से गुरुवार को बीआरसी औराई में मेडिकल असेसमेंट कैंपका आयोजन किया गया था। कैंप में जिला मुख्यालय से डाक्टरों की टीम भी आई थी। इस कैंप के लिए मानसिक दिव्यांग, दृष्टिबाधित, श्रवणबाधित, शारीरिक विकलांग श्रेणी के कुल 52 दिव्यांग बच्चों ने पंजीकरण करवाया था।

कैंप के दौरान डाक्टरों की अलग-अलग विशेषज्ञ टीम ने अपनी श्रेणी के अनुसार बच्चों की जांच की। इस कैंप में नामांकित 52 बच्चों के सापेक्ष 25 शारीरिक विकलांग बच्चों को जांच की गई, जिसमें 21 को सर्टिफिकेट जारी किया गया, जबकि चार बच्चों में विकलांगता की दर काफी कम पाई गई, इस वजहसे उनका आवेदन रद्द कर दिया गया।

इसके बाद मानसिक दिव्यांगता की श्रेणी वाले बच्चों में सिर्फ तीन की जांच की गई। बताया जाता है कि कैंप में जब मानसिक दिव्यांगता वाले बच्चों की जांच और सर्टिफिकेट देने की बारी आई तो कैंप में आईं मनोचिकित्सक ने जांच व सर्टिफिकेट जारी करने से मना करदिया। मनोचिकित्सक डा. मालविका पांडेय का तर्क था कि वह बिना जांच के लिए सर्टिफिकेट नहीं जारी करेंगी। इस पर अभिभावकों ने कहा कि जब यहां जांच की व्यवस्था ही नहीं की गई थी तो उनका पंजीकरण करके इतनी दूर गर्मी मेंक्यों बुलाया गया। हालांकि अभिभावकों के इस सवाल का जवाब मनोचिकित्सक नहीं दे पाईं।

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गर्मी में पसीने से तरबतर अभिभावक और बच्चे सर्टिफिकेट पाने कीलालसा में घंटों परेशान हुए, लेकिन कोई हल नहीं निकला। इस दौरान डीएम और सीएमओ से फोन पर संपर्क भी साधा गया। काफी हो-हुज्जत के बाद मानसिक दिव्यांगता श्रेणी वाले सिर्फ तीन बच्चों को  सर्टिफिकेट दिया गया। इसके अलावा दृष्टिबाधित श्रेणी के 11 व अवशेष एमआर श्रेणी के बच्चों को जिला अस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया। कैंप के लिए नामांकित 52 बच्चों के सापेक्ष सिर्फ 28 बच्चों को ही सर्टिफिकेट दिया गया।

इस शिविर में आर्थो के डा. राहुल द्विवेदी, मनोचिकित्सक डा. मालविका पांडेय, नेत्र विशेषज्ञ डा. प्रदीप सिंह, बीईओ रमाकांत सिंह सिंगरौर, जिला समन्वयक समेकित शिक्षा रश्मि मिश्रा, बाबू रामरती यादव, सहायक महमूद आलम, फीजियोथेरेपिस्ट जेपीसिंह, स्पेशल एजुकेटर अभिषेक पाठक, सुशील उपाध्याय, सुनील कुमार, मनोज कुमार, सत्येंद्र द्विवेदी,  रजनीश पांडेय, संदीप वर्मा आदि मौजूद रहे।

पहले भी लौटाए जाते रहे हैं एमआर बच्चेः मानसिक बच्चों को कैंप में सर्टिफिकेट न देने का यह रोग काफी पुराना है। पूर्व के समय में भी जब कभी मेडिकल असेसमेंट कैंप का आयोजन हुआ है, मानसिक दिव्यांग बच्चों को रेफर ही किया गया है। जबकि जनपद में तीन मनोचिकित्सक हैं। जिसमें संविदा पर कार्यरत डा. अभिनव पांडेय व स्थायी रूप से तैनात डा. मलविका पांडेय और डा. दिनकर प्रसाद त्रिपाठी हैं। बताया जाता है कि मानसिक दिव्यांग बच्चों को जारी किया जाने वाला सर्टिफिकेट अधिकतर संविदा डा. अभिनव पांडेय के द्वारा ही दिया गया है। गुरुवार को बीआरसी औराई में आयोजित कैंप में मानसिक बच्चों की जांच की व्यवस्था न होने का हवाला दिया गया, जबकि जिले में हर प्रकार की सुविधा है। नैदानिक मनोवैज्ञानिक भी मौजूद हैं, बावजूद इसके हर बार कैंपका आयोजन कर एमआर बच्चों को बुलाकर खाली हाथ लौटा दिया जाता है।

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