भुगतान के लिए विपक्षी को दिया दो माह का समय, देरी से भुगतान पर लगेगा 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज
भदोही (संजय सिंह). जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने मुगल कारपेट इंडस्ट्रीज का परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षी एक्सपोर्ट क्रेडिट गारंटी कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया के एमडी के विरुद्ध आदेश दिया है कि तीन माह के अंदर एक्सपोर्ट रिस्क गारंटी पॉलिसी के तहत 20 लाख रुपये का भुगतान करना सुनिश्चित करें। यदि दो माह में भुगतान नहीं किया जाता है तो निर्णय की तिथि से वास्तविक भुगतान की तिथि तक 12% वार्षिक साधारण ब्याज भी अदा करना होगा।
मामला इस प्रकार था कि मुगल कारपेट इंडस्ट्रीज की प्रोपराइटर ममता राज गुप्ता (निवासी अजीमुल्लाह चौराहा) की ओर से एक्सपोर्ट क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन आफ इंडिया द्वारा प्रबंध निदेशक नरीमन प्वाइंट मुंबई, ईसीजीसी, ब्रांच मैनेजर कमर्शियल कंप्लेक्स वाराणसी, ईसीजीसी, इंचार्ज ऑफिसर संत रविदास नगर भदोही और शाखा प्रबंधक बैंक ऑफ़ बड़ौदा को आवश्यक पक्षकार बनाते हुए शिकायत दर्ज कराई कि परिवादी द्वारा निर्यात किए गए कारपेट के मूल्य का भुगतान आयातक द्वारा नहीं किया गया। वादी को विपक्षी से 20 लाख रुपये की क्षतिपूर्ति दिलाई जाए।
जिला उपभोक्ता आयोग के रीडर स्वतंत्र रावत ने बताया परिवादी की ओर से यह मामला परिवादी को एक्सपोर्ट क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन आफ इंडिया की बीमा पॉलिसी वर्ष 1992 में निर्यात किए गए गलीचों के भुगतान के बावत जारी की गई जिसे समय-समय पर परिवादी द्वारा प्रीमिमम अदा कर नवीनीकृत कराया गया है। विपक्षी संख्या एक लगायत तीन ने बैंक के माध्यम से परिवादी मुगल कारपेट से 7500 प्रति वर्ष प्रीमियम की दर से पॉलिसी जारी की गई।
परिवादी के पक्ष में विपक्षीय संख्या एक लगायत तीन ने पॉलिसी कवर नोट जारी किया। परिवादी फर्म अपने निर्यात का कारोबार पूर्व बनारस स्टेट बैंक बनारस के माध्यम से करता रहा और विपक्षी संख्या एक लगायत तीन विपक्षी संख्या चार, जिसमें बनारस स्टेट बैंक बनारस का विलय हुआ, के माध्यम से परिवादी का प्रीमियम भी प्राप्त करता रहा।
परिवादी का आरोप है कि निर्यात किए गए माल का भुगतान प्राप्त करने के लिए उसने संबंधित स्थानों, अधिकारियों से पत्राचार किया, लेकिन उसे भुगतान नहीं मिला। परिवादी ने विदेशी ग्राहक द्वारा भुगतान न किए जाने पर बिल को प्रोटेक्ट कराया और जर्मनी के उच्च अधिकारियों को लिखित सूचना दी और क्लेम सबमिट किया।
विपक्षी पार्टी ने वादी का क्लेम यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि बैंक की गलतियों के लिए ईसीजीसी एक्सपोर्ट रिस्क गारंटी पॉलिसी के तहत उत्तरदाई नहीं है। परिवादी ने पुनः वर्ष 2013 में ईसीजीसी को अपने क्लेम पर विचार करने की प्रार्थना की।
परिवादी के वरिष्ठ अधिवक्ता रविशंकर दुबे ने बताया कि विपक्षी संख्या एक लगायत चार ने परिवादी के बैंक से एक्सपोर्ट क्रेडिट गारंटी का प्रीमियम प्राप्त करने के बावजूद परिवादी की सेवा में कमी करते हुए परिवादी का क्लेम खारिज किया। इस पर जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष दाखिल किया गया।
आयोग की नोटिस पर विपक्षियों ने अपने तर्कों के साथ जवाब दाखिल किया और कहा, भुगतान नहीं होने के लिए ईसीजीसी उत्तरदाई नहीं है। विपक्षीय संख्या चार बैंक ऑफ़ बड़ौदा के अधिवक्ता द्वारा दाखिल जवाब में कहा गया कि परिवादी का कोई भी खाता बैंक से ट्रांसफर करके वर्तमान बैंक ऑफ़ बड़ौदा में नहीं आया है और न ही कोई खाता है।
जिला उपभोक्ता आयोग की पीठ के न्यायाधीश अध्यक्ष संजय कुमार डे, महिला सदस्य दीप्ति श्रीवास्तव एवं सदस्य विजय बहादुर सिंह ने सभी पक्षों के विद्वान अधिवक्ताओं की बहास सुनी और पत्रावली का अवलोकन किया।
उपभोक्ता आयोग ने अपने आदेश में कहा, क्योंकि परिवादी फर्म द्वारा 2 इनवॉइस के माध्यम से वर्ष 1994 में जो कंसाइनमेंट जर्मनी भेजा गया, उसका उस समय मूल 9,80,854 रुपये था, परंतु इतने समय के बाद निश्चित रूप से मूल्य में परिवर्तन हुआ है और इसी कारण परिवादी पॉलिसी के तहत 20 लाख रुपये का क्लेम विपक्षी से दिलाने के लिए प्रस्तुत किया है। यह धनराशि विपक्षी संख्या एक लगायत तीन से प्राप्त करने का अधिकारी है।
विपक्षी संख्या एक लगायत तीन ईसीजीसी को यह आदेश दिया जाता है कि इस निर्णय और आदेश के तीन माह के अंदर परिवादी फर्म को एक्सपोर्ट रिस्क गारंटी पॉलिसी नंबर 38960/ 90 /दिसंबर 94 के तहत 20 लाख रुपये अदा करे।
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